Maharajganj

गांवों में अब नहीं सुनाई देती होली के पारंपरिक लोक-गीतों पर नगाड़े की थाप

आधुनिकता में परंपरागत होली से दूर होते जा रहे युवा पीढ़ी

हिन्द मोर्चा न्यूज़ महराजगंज/लक्ष्मीपुर

लोग लगातार परंपराओं से दूर होते जा रहें हैं। नई पीढ़ी फीकी पड़ रही है। उमंग, उत्साह, प्रेम, सौहार्द और मिलने का प्रतीक होली हुड़दंग से लेकर मिलन समारोह तक का रंग रूप बदल गया है। होली के रंग त्योहार के आते ही कभी ढोलक की थाप और मंजीरों पर चारों ओर फाग गीत गुंजयमान होने लगते थे। लेकिन, आधुनिकता के दौर में आज के समय में यह परंपरा लुप्त सी हो गई है। माघ महीने से ही फागुनी आहट दिखने लगती थी। लेकिन, आधुनिकता के इस जमाने में गांव फागुनी महफिलों से अछूते नजर आ रहे हैं। कुछ बुजुर्गों का कहना है। कि होली पर्व पर नशा के बढ़ते चलन से लोग परंपरागत होली से दूर होते जा रहे हैं। वर्षों पहले ग्रामीण क्षेत्र में गोबर और कीचड़ की फाग खेलने की परंपरा थी जो अब लुप्त हो गई है। अब रंग गुलाल की होली ही सीमित रह गई है। वर्षों पहले रंगों का पर्व होली बड़े ही उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता था। वर्तमान समय में होली पर्व पर शराब के बढ़ते चलन ने त्योहार के रंग को फीका कर दिया है। इस दौरान तमाम लोग पुरानी रंजिश भी निकालने से नहीं चूकते हैं। यही वजह है कि अधिकांश लोग अब होली के हुड़दंग में शामिल होकर होली खेलने से परहेज करने लगे हैं। कुछ ही जगहों पर लोग मिश्रित परंपरा में रमते हैं और यहां पर उसी परंपरा के अनुसार त्योहार भी मनाते हैं। लेकिन, धीरे-धीरे सिर्फ परंपराओं का निर्वहन मात्र किया जा रहा है। युवाओं में फाग के प्रति लगाव नहीं है। इसके चलते ढोल, झाल और मंजीरे की झंकार बहुत ही कम सुनने को मिलती है। लोगों का मानना है कि कंप्यूटर युग के चलते जहां पुरानी परंपराएं दम तोड़ रहीं हैं, वहीं पारंपरिक गीतों की जगह अश्लील और द्विअर्थी गानों ने अपना स्थान बना लिया है। संस्कृतिक होली गीतों में अब अश्लीलता का सागर हावी हो चुका है। इसके कारण समाज काफी मर्माहत है। थोड़ी सी हँसी मजाक लोगो को थाने की राह दिखा देती है।

मंहगाई भी एक वजह

रंगोत्सव नजदीक आते ही रंग, गुलाल, पिचकारी, मुखौटे व मिठाइयों की कीमत में बेतहाशा वृद्धि हो जाती है। लोगों के उत्साह में कमी का एक कारण यह भी है। प्रत्येक त्यौहार पर महंगाई का असर देखने को मिलता है। त्योहारी सामानों की बेतहाशा बढ़ते दाम को देखते हुए लोग कम से कम चीजों में अपनी जरूरतों को पूरा करने में मजबूर है। इसका परिणाम इस त्यौहार में देखने को मिलता है। समय के साथ बेतहाशा महंगाई से होली का रंग फीका होने लगा है। अब आधुनिकता के साथ फाग गीतों की परंपरा विलुप्त होती जा रही है। ग्रामीण इलाकों में एक दो मंडली है, जो इस परंपरा को जीवित रखने की कवायद में लगे हैं। जबकि युवा वर्ग इसे भुलते जा रहे हैं।

 

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