Maharajganj

अनोखा गांव : हर तीसरे साल एक दिन के लिए घर छोड़ देते हैं ग्रामीण

●हिन्दमोर्चा न्यूज़ सिसवा बाजार/महराजगंज

महराजगंज जनपद में एक ऐसा गांव है, जहां हर तीन साल पर पौ फटते ही एक दिन के लिए ग्रामीण घर छोड़ देते हैं। पूरे दिन गांव के सिवान में पूजा पाठ के साथ दिन गुजारने के बाद ग्रामीण शाम को पुनः घर में प्रवेश करते हैं। यह गांव है जिले के सिसवा विकास खंड का ग्रामसभा बेलवा चौधरी। जो अब सिसवा नगरपालिका के सीमा विस्तार के बाद राजाजीपुरम वार्ड के नाम से जाना जाता है। इस गांव में निवास करने वाला प्रत्येक कुनबा एक दिन के नवजात से लेकर वृद्ध तक अपना पूरा दिन गाँव छोड़कर बाहर सिवान, मंदिर और पंचायत भवन में गुजारते हैं। पशु तक गाँव में नहीं रहते हैं। यह दिन रहता है वैशाख पूर्णिमा का। जिसे ग्रामीणों द्वारा परावन पर्व कहा जाता है। इस पर्व को हर तीन वर्ष पर वैशाख पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन ग्रामीण अपने पूरे परिवार की रक्षा के लिए एक दिन घर छोड़कर पूरे दिन गांव के सिवान में रहते हैं। मान्यता यह है कि ऐसा करने से गांव के लोग महामारी व अनहोनी से सुरक्षित रहते हैं।
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सौ वर्षों से परंपरा को निभाते हैं ग्रामीण
बेलवा निवासी किसान आदर्श इंटर कॉलेज बेलवा के प्रबंधक सुरेंद्र मल्ल का कहना है कि उनके स्व. पिता उदयभान मल्ल व गांव के बुजुर्गों के अनुसार लगभग सौ वर्ष पूर्व कुशीनगर जनपद के बगही कुटी के एक संत अपने शिष्यों के साथ यहाँ से गुज़र रहे थे। इस बीच गाँव के बागीचे में उनका दल रुककर भोजन पानी की व्यवस्था करने लगा। इसके लिए उन्होंने गाँव वालों से लकड़ी मांगी। किंतु उन्हें लकड़ी नहीं मिली तो संतों के दल ने बगीचे में अनाजों की दौरी के लिए गाड़े गए मेह (खुंटों) को उखाड़कर अपना भंडारा बनाकर भोजन किया। मेह उखाड़े जाने की बात जब ग्रामीणों को पता चली तो ग्रामीणों ने आपत्ति जताई। जिस पर संत लकड़ी न दिए जाने की बात पर क्रोधित होकर ग्रामीणों को गांव के विनाश का श्राप दे दिया। तभी कुछ ग्रामीण समय की नजाकत को देखते हुए उनसे क्षमा याचना करने लगे। जिस पर संत ने अपने क्रोध को शांत करते हुए कहा कि गाँव वाले आज की तिथि अर्थात वैशाखी पूर्णिमा को दिन भर गाँव के बाहर प्रत्येक तीन वर्ष पर दिन भर सपरिवार व्यतीत कर सांयकाल अपने घरों को जाएंगे तो मेरा श्राप नहीं लगेगा।
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आज भी होती है बिना मेह की दौरी
बताया जाता है कि श्राप के दौरान ग्रामीणों ने काफी क्षमा याचना की थी। जिस पर संतों ने जाते-जाते कहा कि गांव में साधुओं ने मेह उखाड़ा है। इसलिए आज से इस गाँव में बिना मेह के ही दौरी हुआ करेगी। तब से लेकर आज तक इस गांव में बिना मेह के ही दौरी होती चली आ रही है।
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धार-कपूर जलाने के बाद ही घर में प्रवेश करते हैं ग्रामीण
संतों के श्राप दिए जाने के बाद से ग्रामवासी हर तीन वर्ष पर वैशाख पूर्णिमा के दिन सूर्योदय के पूर्व उठकर घरों में ताला बंदकर गाँव के बाहर खेत, सीवान व बगीचे में डेरा डालकर दिन बिताते हैं। दिन डूबने के बाद अपने घरों को वापस लौटते हैं। महिलाएं घरों से मुख्य गेट पर छाक देकर धार-कपूर जलाकर ही घर में प्रवेश करती हैं।
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23 मई को निभाई जाएगी परंपरा
इस वर्ष परावन की यह परंपरा 23 मई दिन गुरूवार को वैसाख/बुद्ध पूर्णिमा के दिन मनाई जाएगी। इस दिन एक बार फिर से यहां के बाशिंदे घरों को छोड़कर गांव के सिवान, स्कूल, पंचायत भवन व बगीचों में दिन गुजारेंगे।

हिन्दमोर्चा टीम,

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