UP की राजनीति में सपा को तगड़ा झटका : फायर ब्रांड नेता और रामपुर के विधायक आजम खां की सदस्यता रद, अखिलेश यादव के लिए बढ़ेगी चुनौती

UP News: लखनऊ, राज्य ब्यूरो। फायर ब्रांड नेता और रामपुर के विधायक मोहम्मद आजम खां (Azam Khan) की विधानसभा सदस्यता रद होना समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है। हाल ही में सपा संस्थापक व पिता मुलायम सिंह यादव को खोने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के लिए विधानसभा में आजम खां के न होने से चुनौती और बढ़ सकती है।
सपा के संस्थापक सदस्यों में शुमार आजम खां पार्टी के मुस्लिम चेहरे के तौर पर जाने जाते हैं। पहले मुलायम सिंह यादव और फिर अखिलेश यादव के साथ उन्होंने पार्टी के तमाम उतार-चढ़ाव देखे। पार्टी के बड़े फैसलों में उनकी सलाह अपिरहार्य मानी जाती थी। यहां तक कि वर्ष 2012 में हुए विधान सभा चुनाव में जब सपा को बहुमत मिला तो मुख्यमंत्री के पद पर अखिलेश की ताजपोशी के फैसले में भी वह साझेदार थे।
दसवीं बार के विधायक और संसद के दोनों सदनों के सदस्य रह चुके आजम खां का लंबा राजनीतिक अनुभव सपा के लिए मायने रखता है। विधान सभा में नेता प्रतिपक्ष से लेकर संसदीय कार्य मंत्री के दायित्व को बखूबी निभाने वाले आजम अठारहवीं विधान सभा में भी मुख्य विपक्षी दल सपा के मजबूत स्तंभ माने जा रहे थे। अपनी तकरीरों, दलीलों और व्यंग्यबाणों से वह सदन में सत्ता पक्ष के कवच को भेदने की कूवत रखते थे। यह बात और है कि अठारहवीं विधान सभा के गुजरे सात माह के दौरान आजम एक दिन भी सदन में नहीं बैठे।
मई में हुए बजट सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण से पहले उन्होंने अपने विधायक पुत्र अब्दुल्ला आजम के साथ विधान सभा अध्यक्ष सतीश महाना के कक्ष में सदन की सदस्यता की शपथ ली जरूर लेकिन कार्यवाही में अब तक शामिल नहीं हुए। आजम जितना अपनी जुबां से निकले जहर बुझे तीरों के लिए जाने जाते हैं, उतना ही अपनी तुनकमिजाजी की वजह से भी।
सपा सरकार में आजम के जबर्दस्त प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2013 में अमेरिका के बोस्टन एयरपोर्ट पर खुद को पूछताछ के लिए रोके जाने से बिफरे आजम के मिजाज को भांपकर ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में स्वयं की ओर से प्रयागराज कुंभ के सफल आयोजन पर दिए जाने वाले व्याख्यान का बहिष्कार कर दिया था।
सपा के साथ आजम की खट्ठी-मीठी तब भी चली जब मुलायम पार्टी के मुखिया थे और तब भी जब अखिलेश सर्वेसर्वा हुए। जेल में रहने के दौरान अखिलेश से उनकी कड़वाहट की खबरें भी सुर्खियां बनीं लेकिन राज्य सभा चुनाव के लिए हुए सपा के टिकट वितरण में उनके करीबियों का पलड़ा भारी रहा।