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जीवन में सुख शांति के लिए, समय समय हमें अपने पितृयो के लिए नेक कर्म करने चाहिए

सुनीता कुमारी पूर्णियां बिहार

 


प्रत्येक धर्म मनुष्य के कल्याण के लिए बना है ,प्रत्येक धर्म के जड़मूल में एक ही बात बताई गई है “सभी जीवों के प्रति मानवता भाव एवं मानव का कल्याण।” इसके लिए सभी धर्म में नियम और आचरण की व्याख्या गई है। नियम के अन्तर्गत पूजा-पाठ आता है, एवं आचरण के अंतर्गत हमारा व्यवहार, वाणी एवं संस्कार आता है।

कहने का तात्पर्य यह है कि,सभी धर्म पूजा-पाठ के साथ-साथ आचरण पर भी बल देते है ताकि,समाज स्वस्थ और सुंदर बन सके। परंतु दुर्भाग्य की बात यह है कि, धर्म के नियम को तो सभी मानते है परंतु आचरण पर कोई ध्यान नही

देता है ।आज के समय में जो जितना धर्मवादी है, वो उतना ही अनैतिक कार्यो में लिप्त है।नशाखुरानी जिसमें सबसे पहले आता है। सनातन धर्म में सोलह संस्कार की बात कही गई है एवं प्रत्येक संस्कार को पूरा करने के लिए हमें पंडित की अवश्यकता होती है।

वर्तमान समय में ज्यादातर कर्मकांड करनेवाले पंडित नशा करते है ,पानमसाला और गुटका खाते है। ऐसे पंडितो को यदि यजमान पूजा-पाठ,या अन्य कोई संस्कार करने बुलाते है तो ,पूजा स्थल से आस्था ही गायब हो जाती है ,पूजा या संस्कार की प्रत्येक विधि मात्र खानापूर्ति जैसी लगती है ,लोगो का मन उचाट जैसा हो जाता है ,सभी यही चाहते है कि, जल्दी से जल्दी विधि समाप्त हो तो पल्ला छुटे।

वही यदि कोई ज्ञानवान और जानकार पंडित पूजा-पाठ, संस्कार आदि में आते है तो ऐसा माहौल बना देते है कि, सभी लोग पूजा में शामिल होकर आत्मिक शांति महसुस करते है ,एवं पंडित को आदर सम्मान के साथ विदा करते है।

आज के भौतिकवादी युग में की पंडितों की संख्या तो बढ़ ही रही है,परंतु ईश्वर के प्रती आस्था होते हुए भी पूजा-पाठ एवं कर्मकांड के प्रती लोगों में विश्वास घट रहा है। आज के समय में यजमान भी कम नही है।पूजा चाहे जो भी हो ,पूजा में लगनेवाला समय और विधि पंडित और शास्त्र सम्मत न होकर यजमान के हिसाब से होता है, एक घंटे की पूजा आधे घंटे में निपटाई जाती है ,इन्ही सब कारणों से हमारे जीवन में परेशानियां बढ़ रही है क्योंकि लोग न तो हम धर्म के नियम को महत्व दे रहे है ना ही धर्म के आचरण को।

हमारे समाज में जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो, उसे गीता ,रामायण, भजन आदि सुनने के लिए कहा जाता है ताकि बच्चा संस्कारी और आचरणवान पैदा हो। परिवार का नाम रौशन करे ,देश और समाज का कल्याण करे ,ऐसा होता भी है ,एक से एक महापुरुष इसका उदाहरण है ,जिनके माता पिता भी संस्कारी और विद्वान हुए है,समाजसेवी तथा राष्ट्रवादी हुए है।

परंतु ज्यादातर मामलो में बच्चा जैसे ही बड़ा होता है,
आपसी रंजिश, व अन्य कई कारणों से बच्चे को संस्कार और आचरण सिखाने की जगह ,समाज की ऊंच-नीच, जाती पाती ,धनवान निर्धन की विसंगतियां, दिखावा, छल कपट, आदि चीजों को सिखाने लग जाते हैं। जिस कारण बच्चा आचरणहीन हो जाता है ।

जीवन में या तो अपराधी बन जाता है या नशेड़ी बन जाता है, या किंकर्तव्यविमूढ़ होकर कुछ भी नहीं बन पाता है। पिता के द्वारा कमाए गए धन को लुटाता है, ऐय्यासी करता है और माता पिता को ही रात दिन परेशान करता है। जिसका दुष्परिणाम पूरे परिवार को भुगतना पड़ता है।
इसी कारण सनातन धर्म में धर्म के नियम के साथ-साथ आचरण पर भी बल दिया जाता है ।

क्योंकि यदि हम सही आचरण नहीं करते हैं तो हम बहुत सारे दोष के भागी बन जाते हैं, जिसमें पितृ दोष सबसे पहले आता है। पितृ दोष एक बहुत बड़ा दोष है।
पितृदोष के ही कारण जीवन में बहुत सारी कठनाई आने लगती है ,तरक्की रूक जाती है ,संतान के विवाह में बाधा आने लगती है ,लोग बिमारी की भी चपेट में आने लगते है। घर में हर दिन क्लेश होता रहता हैl

इन सब का एक ही कारण है “पितृदोष “

हम रात दिन जप तप ,पूजा-पाठ करते है लेकिन इसका सार्थक परिणाम हमें नही मिलता?
जप तप ,पूजा-पाठ का भी सार्थक परिणाम हमें तभी मिलता है जब पितृ प्रसन्न होते है,घर के बुजुर्ग प्रसन्न होते है।

हमारे समाज में बुजुर्गों की अनदेखी करना, सम्मान ना देना, सेवा ना करना, यह सब आम बात है ? ये सारे आचरण हमें पितृ दोष का भागी बना देते हैं । हमारी तरक्की, हमारा सुखचैन सब समाप्त हो जाता है। हमारे सामने एक के बाद एक मुश्किलें आने लगती हैं और हम समझ ही नहीं पाते हैं कि, हमारे जीवन में हो क्या रहा है ।

जिस तरह सुख शांति के लिए पूजा की आवश्यकता है उसी तरह सुख शांति के लिए अच्छा आचरण भी जरूरी है ।इसके लिए जरूरी है कि, हम संस्कारी बने अपने पूर्वजों को वह सम्मान दें जिसका वे हकदार है। जो बुजुर्ग हैं उनकी भी सेवा करें उन्हें सम्मान दें, उन्हें अच्छा जीवन दें तथा जो इस दुनिया में नहीं है उन्हें भी सम्मान दें ।

समय-समय पर तर्पण एवं विधिपूर्वक एवं शास्त्र सम्मत श्राद्ध करे ।उनकी जन्मदिवस एवं पुण्यतिथि पर उन्हे याद करते हुए, हवन करे पूजा, करे तथा यथासंभव दान करना चाहिए जिससे पितृ प्रसन्न हो ,हमें आशीर्वाद दे ,हमारा जीवन खुशहाल हो सके। अपने भाव अपने व्यवहार द्वारा पितृ को प्रसन्न करना चाहिए तभी हमें पुण्य फल मिलेगा क्योंकि भगवान भी तभी हमें आशीर्वाद देते हैं जब हमारे घर के बुजुर्ग तथा हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं।

जो बुजुर्ग परिवार में जीवित हैं ,उन्हें तो सम्मान देना ही चाहिए,उनकी देखभाल, में कमी रखनी ही नहीं चाहिए ,लेकिन जो नहीं है उनके लिए भी समय-समय पर कुछ कर्म करने चाहिए। तभी हमें पितृदोष से छुटकारा मिलता सकता है ।

इसके लिए प्रत्येक मास की अमावस्या को सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद घर के मंदिर में या घर के पूजा के स्थान पर दीप प्रज्वलित करके अपने गुरुदेव,इष्टदेव ,पारब्रह्मापितामह ,सत्य भगवान सत्पुरुष भगवान ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश, व दुर्गा मां को याद करके वंदन करना चाहिए।

अपने हाथ में जल लेकर संकल्प लेना चाहिए और संकल्प लेने का उद्देश्य बताना चाहिए। उद्देश्य में यह बोलना चाहिए कि-
” आज आमावस्या के दिन, मैं सूर्योदय से लेकर सुर्यास्त तक जो भी सद्कर्म करूंगा या करूंगी ,जो भी नेक कर्म व दान धर्म करूंगा या करूंगी , उनका संपूर्ण पुण्य फल हमारी माता और पिता पक्ष के दोनों पितृयो को मिले ,वें जहां भी हो ,जिस योनि में हो , वहां उनका कल्याण हो, उनकी अवगति हो , हमारे आज के नेक कर्म के पुण्य फल से उनका कल्याण हो, पृथ्वी पर रहते हुए उनसे जो भी गलती या पाप कर्म हुए है ,उन सभी पाप कर्म से उन्हे मुक्ति मिले ।”

संकल्प लेने के बाद कृपालु परमेश्वर ,सत्य भगवान, सत्पुरुष भगवान, ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश, भगवान देवता, दुर्गा मां के श्री चरणों में पितृयो को स्थान मिले , ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसे शुभ उद्देश्य के साथ सच्चे भाव से,मन से ,यह नेक सर्व पितृ पक्ष के कल्याण के लिए इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए

“ॐ ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः ॐ
” ह्रीं नमः स्वाहा ”

इस मंत्र के उच्चारण के बाद, हाथ में लिए जल जमीन पर छोड़ देना चाहिए, और फिर तुलसी मां के पास जाकर ,तुलसी जी का अच्छे से वंदन करना चाहिए। अच्छे भाव से वंदन करना चाहिए ।

अपना परिचय देकर उद्देश्य बताना चाहिए , फिर तुलसी पत्र लेकर, भगवान के भोग के प्रसाद उपर रखना चाहिए ।
भोग प्रसाद के लिए, गेहूं का आटा,कालातिल ,गुड़
,गाय का घी ,गाय का दूध ,सब मिक्स करकर छोटी-छोटी गोलियां बनाना चाहिए । भगवान श्री हरि विष्णु के कृष्ण या राम अवतार का नाम स्मरण करते हुए , भजन कीर्तन करना चाहिए।
गोलियां बनाते समय देवस्थान में दीप प्रज्वलित रहना चाहिए,।गुरुदेव ,इष्टदेव, कुलदेवता, कुलदेवी ,स्थान देवता,ग्राम देवता का स्मरण करना चाहिए है।

अपने हाथ में बनाई हुई गोलियों में से पहला भोग गणेशजी को देना है,एवं इस मंत्र का उच्चारण
“ॐ ह्रीं नमः स्वाहा” इसी तरह घर के मंदिर में सथापित गुरुदेवता, कुलदेवता ,कुलदेवी माता , इष्टदेवता, ग्रामदेवता ग्राम, रक्षकदेवता, ब्रह्मदेवता, पृथ्वीदेवता, जलदेवता ,अग्नि देवता, वायु देवता, आकाश देवता, पंचदेवता, दीपदेवता , नवग्रहदेवता ,स्थान देवता, वास्तुदेवता, काल भैरव देवता ,बटुक भैरव देवता , को भी भोग लगाना चाहिए।

ॐ ह्रीं नमः स्वाहा बोलकर गोलियों का भोग लगाना चाहिए।
एक दुसरे, शुद्ध पात्र जिसमे भोग रखा जा सके देवता के आगे रखना चाहिए।
” ॐ ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः ॐ ह्रीं नमः स्वाहा” बोलकर वासुदेव भगवान को लगाना चाहिए।

भोग लगाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि,बड़ी उंगली से ही भोग देना चाहिए।
अपना एक हाथ मुंह पर रखकर दुसरे हाथों से भाव से देवी-देवताओं का नाम स्मरण करना चाहिए ,एवं

“ॐ ह्रीं नमः स्वाहा ” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए। ऐसा लगना चाहिए कि, आप भगवान को देवी-देवताओं को भोजन ,अपने हाथों करा रहे हो। ऐसा भाव करते जाना है ,ऐसा तीन बार करना चाहिए ।उन सारे भोग के ऊपर तुलसीपत्र का रखा जाना भी जरूरी होता है।तुलसीपत्र रखते समय भी

“ॐ ह्रीं नमो भगवते वासुदेवाय नमः ॐ ह्रीं नमः स्वाहा”
मंत्र का उच्चारण करना होता है। जल लेकर तीन बार अपने देवस्थान में रखा भोग के उपर अपना हाथ घुमान होता है और उस समय “ॐ पवित्र ॐ “का उच्चारण तीन बार हाथ में जल लेकर करना होता है ।इन सब से देवस्थान में रखा प्रसाद का सुरक्षा कवच मजबूत बन जाएगा ।
मंत्रों के उच्चारण से प्रसाद दुषित नहीं होगा।

इन सब विधि के बाद प्रसाद लेकिन पास की नदी या समुद्र के पास जाना चाहिए।दोनो हाथ जोड़कर अपना परिचय देना चाहिए और वहां पर जाने का उद्देश्य बताना चाहिए। पंचतत्व में से एक तत्व जल में एक एक करके भोग की सारी गोलियों को जल में रखना चाहिए।
कोई भी नेक कर्म करने के समय शब्द और भाव का बड़ा महत्व है।

उसका भी सकारात्मकता प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है।इसलिए इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। सर्व पितृ पक्ष के कल्याण के लिए अमावस्या का दिन इस लिए पसंद किया गया है कि,इस दिन नेक कर्म करने से हमारे दोनों पक्ष के पितृपक्ष के कुल के सभी गुरुदेवो की शक्ति और बल मिलता है।

इसलिए इस दिन सर्व पितृपक्ष लिए के नेक कर्म करना सर्व श्रेष्ठ माना गया है ।इस दिन नेक कर्म करने के लिए सुबह आपने जो संकल्प लिया था ,सूर्यास्त के समय, भगवान को अपना सुबह से लेकर शाम तक किये गए, नेक कर्म भगवान को अर्पण कर देना चाहिए ।संकल्प से बहार निकलना चाहिए ,जिससे आपके द्वारा किए गए नेक कर्म से आपके माता पक्ष, पिता पक्ष ,दोनों पक्ष के सर्वपितृयो का कल्याण होता है।

इस लिए यह नेक कर्म अवश्य करना चाहिए। इस दिन कर्मवादी, नेक ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए। गौमाता को भोजन करवाना चाहिए ।पशु पक्षियों को भोजन करवाना चाहिए, और भगवान के भरोसे आस रख रहे जीवों को भोजन करवाना चाहिए ।राम कार्य करना चाहिए। पीपल के वृक्ष को पानी जल चढ़ाने चाहिए ।

वहां पर गाय के घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए। शिव मंदिर जाकर शिव की पूजा अर्चना करना चाहिए। दोनों पक्ष के सर्वपितृयो का कल्याण करके, पितृयो के साथ देवी-देवताओं का शुभ आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।

प्रत्येक मनुष्य को यह कर्तव्य निभाना चाहिए ,साथ ही कार्तिक मास, चैत्रमास , भाद्रपद मास, में जितना हो सके,अपने दोनों पक्ष के पितृयो के लिए शक्ति अनुसार नेक कर्म करना चाहिए ।श्राद्ध कर्म की विधि को करना चाहिए। जिससे पितृ प्रसन्न होते हैं और ढेर सारा आशीर्वाद देकर हमारे जीवन को सरल बनाते हैं।

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