639वें सालाना उर्स का हुआ आगाज लेकिन इंतजामिया कमेटी की व्यवस्था ध्वस्त

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इंतजामिया कमेटी बताएं कि जायरीनों के लिए रैन बसेरा की व्यवस्था कहां है?
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रेन बसेरे को किराए पर देकर कौन कर रहा है पैसे का वसूली?
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मौजू बड़ा है दान पेटी का पैसा किसके पास जा रहा है?
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दान पेटी में किए गए दान के पैसे का इस्तेमाल कहां हो रहा है?
टांडा अंबेडकर नगर। विश्व विख्यात सूफ़ी संत हजरत सैयद मखदूम अशरफ़ का 639वें सालाना उर्स का आगाज हो चुका है। उर्स मेले का शुभारंभ सज्जाद नसीन मोहियुद्दीन अशरफ के द्वारा किया गया। बताते चले कि प्रत्येक वर्ष यह उर्स का मेला बड़े ही भाव रूप से लगता है जिसमें भारी संख्या में जरीनों का जमावड़ा होता है। देश के कोने-कोने से एवं विदेशों से भी जायरीनों का आगमन होता है।
जायरीन श्रद्धालु बाबा की चौखट पर मत्था टेकने एवं रूहानी इलाज के लिए भी आते हैं।
इतनी भारी भीड़ की व्यवस्था करने में जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन के भी हाथ पांव फूल जाते हैं ।तमाम प्रकार के घटनाओं का सिलसिला एवं संगीन अपराधों का भी मामला सामने आता रहता है ।और वहीं जेबकतरों का भी भरमार होता है। जिसमें पुरुष के अलावा महिलाओं का भी गैंग होता है ।जो बड़ी ही शातिराना ढंग से लोगों की जेब काटकर माल पार कर देते हैं।
मोबाइलों की चोरी भी आम बात है। किंतु कहीं ना कहीं भरोसे की उम्मीद नवागत पुलिस कप्तान के जिले की कमान संभालने के बाद जनता में उम्मीद की किरण जगी हुई है। क्या जनता की उम्मीद पर कप्तान साहब खरा उतर पाएंगे? क्योंकि स्थानीय प्रशासन यहां सबसे बड़ा रोड़ा है ।जिसकी निरंकुश्ता और संलिप्त कई प्रश्न चिन्ह खड़े कर देते हैं।
मेले में आए हुए भारी संख्या में जायरीनों द्वारा दान पेटी में पैसा दान किया जाता है ।जिसकी रकम काफी भारी भरकम होती है ।किंतु सवाल है। कि दान पेटी में दान में आया हुआ पैसा की निगरानी कौन करता है? इसका लेखा-जोखा कौन रखता है? क्या इस दान पेटी के पैसे का सदुपयोग होता है? क्या जायरीनों के लिए जरूरी व्यवस्थाओं/सुविधाओं का आयोजन किया जाता है। या सब कुछ ढाक के तीन पात ही रहता है।
उर्स का मेला किराए पर कमरा देने वालों के लिए सोने के अंडे जैसा समय साबित होता है। दुर्भाग्य है । दूर दराज से आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा जब कमरा किराए पर लिया जाता है ।तो उनसे भारी भरकम पैसा वसूला जाता है। बातें तो वर्षो से आम है। कि कमरों के हिसाब से उनकी औकात से कहीं ज्यादा किराया वसूला जाता है।
ऐसे भी बिल्डिंग/खानकाह बने हुए हैं। जहां पर उर्स का ₹10000 तक को वसूला जाता है। बडा प्रश्न चिन्ह बनकर खड़ा होता है। कि कमरे को किराए पर देने वाले मकान मालिकों के इनकम का लेखा-जोखा किसके पास है? क्या राजस्व विभाग इसकी जानकारी को शासन तक पहुंचाते है या नहीं? क्योंकि अच्छी खासी सरकारी नौकरी करने वाला इतना इनकम नही कर पाता जितना कि यहां मकान मालिकों द्वारा किराये के कमरों से इनकम होता है।
क्या ये मकान मालिक सरकार को इनकम टैक्स अदा करते हैं। या फिर वर्षों से राजस्व की आंखों में धूल झोककर चूना लगा रहे हैं। बड़ी-बड़ी बिल्डिंगें है। 10,20,,50 से लेकर सैकड़ो कमरों के बिल्डिंगें /खानकाह मौजूद हैं,। जिनसे मनमाना किराया जाता है।
अब सवाल है कि बिजली आपूर्ति भी दरगाह में भरपूर मात्रा में होता है। तो क्या बिजली विभाग द्वारा उनके बिल्डिंगों को चिन्हित बिजली खपत की सही जानकारी विभाग के पास है ।या नहीं या फिर एसडीओ और जेई के रहमों करम पर बिजली का खुलेआम दोहन किया जा रहा है।
बाहर से आए हुए जायरीनों के लिए रैन बसेरा एक बड़ा सहारा होता है किंतु अब तो रेन बसेरा भी किराए पर चल रहा है तो यह जायरीन बेचारे क्या करेंगे मजबूरन मनमाना उसे किराया रसूल करने वाले मकान मालिकों के पास ही जाएंगे ।
सवाल बहुत बड़ा है और इसका जवाब क्या इंतजामिया कमेटी देगी। और उर्स में आये हुऎ जायरीओं की भीड़ को नियंत्रित करना और उन्हें व्यवस्था उपलब्ध कराना पुलिस प्रशासन के लिए बडा ही चुनौतीपूर्ण होता है किंतु अव्यवस्थाओं के बीच जायरीनऐनकेन प्रकरणेन जियारत करके चुप चाप वापस चले जाते हैं, तो वहीं रूहानी इलाज के नाम पर ढोंगी बाबाओ का भी भरमार है जिन पर नकेल कसने में इंतजामिया कमेटी पूरी तरह फेल है।
स्थानिया प्रशासन भी इन बाबाओ का कोई इलाज नहीं कर पाती। ऐसे भी लोग बाबागिरी का चोला ओढ़ाकर अपनी दुकान चला रहे हैं। और उर्स के मेले में आए हुए श्रद्धालुओं को जहां बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है वही जिम्मेदारों की तो बल्ले बल्ले ही रहती है क्योंकि इन पर तो प्रशासन का कोई हस्तक्षेप या फिर कोई जोर चलता हुआ नजर नहीं आता। जायरीनों के लिए रैन बसेरा अति महत्वपूर्ण है जायरीनों द्वारा दान किए गए दान पेटी का पैसा का जिम्मेदारान कौन है, दान किए गए पैसे का सदोपयोग जायरीनों के हित में हो रहा है या नहीं ,मकान मालिकों द्वारा भारी भरकम किराया वसूल करना, जब खतरों का जलवा कायम रहना, ढोंगी बाबाओ के जाल में जायरीनों का फंसना महिला जारिनों के साथ दुराचार,दुर्व्यवहार और पैसे की उसूली करना ऐसे तमाम समस्याओं का निदान दूर-दूर तक नजर नहीं आता।