Ayodhya

लाखों खर्च के बावजूद बैनामें की जमीन नहीं पा रहे किसान,तहसील का चक्कर लगाने को मजबूर

  • इस तरह के दर्जनों पीड़ितों के मामले में जिम्मेदार कुछ बताने को तैयार नहीं

अंबेडकरनगर। खतौनी की जमीन का लाखों रुपए खर्च कर बैनामा लेना और मुकदमा जीत अपने नाम दर्ज होने के बावजूद कब्जा दखल नहीं पाने वाले दर्जनों किसान तहसील का चक्कर लगा रहे है। अधिकारी संबंधित थाना पर पंचायतन हल कराने की शिकायती पत्र पर टिप्पणी लिखने तक ही सीमित हो गए है।एक ऐसा ही मामला मंगलवार को तहसीलदार के समक्ष आया। तहसीलदार ने शिकायती पत्र पर उक्त टिप्पणी लिखकर थाना को भेज दिया। जबकि विपक्षियों के विरुद्ध पुलिस ने गुंडा एक आदि की कार्यवाही भी की है इसके वावजूद विपक्षी बैनामे की जमीन से कब्जा छोड़ने को तैयार नहीं है।जलालपुर तहसील के शिवपाल ग्राम पंचायत निवासिनी विजय लक्ष्मी पत्नी करुणाशंकर ने गांव निवासी हरिलाल से गाटा संख्या 672 रकबा 0.3040 का बैनामा लगभग आठ वर्ष पहले लिया था। तत्समय बैनामा कर्ता ने क्रेता विजय लक्ष्मी को कब्जा भी दिया था किंतु बैनामा करने वाले के मौत के बाद उसके परिजन राजकुमार माया राम लल्लन पुत्रगण स्व हरिलाल, बिमला पत्नी साधु शरन, देवब्रत, अनिरुद्ध अनूप पुत्रगण साधुशरण आपत्ति दाखिल कर खेत पर जबरदस्ती अपने कब्जे में ले लिया। इस दौरान तहसील और थाना पर कई बार पंचायत हुई किंतु उक्त दबंगों ने खेत से कब्जा नहीं छोड़ा। नतीजतन जैतपुर पुलिस ने कई बार शांतिभंग में चालान कर गुंडा एक्ट की कार्यवाही भी किया। लगातार हो रहे मारपीट झगड़ा की आशंका को देखते हुए पीड़िता विजय लक्ष्मी ने उच्च न्यायालय की शरण लिया।माननीय उच्च न्यायालय में रिट पेटिशन संख्या 4820 दायर किया जिसमें माननीय अदालत ने जमीन पर यथा स्थिति बनाए रखने का आदेश पारित करते हुए तीन माह के अंदर नामांतरण खतौनी क्रेता के नाम करने को कहा। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के क्रम में तहसीलदार मजिस्ट्रेट अदालत ने 16 अप्रैल को खतौनी विजय लक्ष्मी के नाम दर्ज करने का आदेश दिया। खतौनी क्रेता विजय लक्ष्मी के नाम दर्ज होने के बावजूद विपक्षी गुंडई दंबगई के बल पर जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है। मंगलवार को पीड़िता जनसुनवाई कर रहे तहसीलदार को शिकायती पत्र देकर कब्जा दिलाने की मांग किया जिस पर तहसीलदार ने उक्त टिप्पणी लिखकर जैतपुर पुलिस के पास भेज दिया। अब सवाल यह है कि बैनामा लेने और मुकदमा लड़ने में लाखों रुपए खर्च करने वाले क्रेता को अपनी जमीन कैसे मिलेगी कोई बताने वाला नहीं है। यह मामला एक नजीर है ऐसे दर्जनों किसान तहसील का चक्कर लगाने को विवश है।

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