न्यायालय के आदेश बावजूद विधवा को नहीं मिला जमीन पर कब्जा, किराए के कमरे में रहने को मजबूर

अंबेडकरनगर। अदालत दर अदालत में विपक्षी द्वारा दायर किए गए मुकदमे में लगातार हार तथा जुर्माना लगाने और आरोपियों के विरुद्ध अपराधिक मुकदमे दर्ज होने के बावजूद खतौनी और आबादी की जमीन पर कब्जा पाने से वंचित विधवा महिला झोला में ढेर सारा अदालती आदेश की छाया प्रति लेकर तहसील का चक्कर लगाने को विवश है। तहसील प्रशासन उसे जमीन पर कब्जा दिलाने के बावजूद सिविल न्यायालय में वाद दायर करने की सलाह देकर अपने कानूनी कर्तब्यो से मुंह मोड़ लिया है। जनचर्चा है कि विपक्षी के रसूख के आगे तहसील प्रशासन न्याय नहीं दे पा रहा है। प्रकरण जलालपुर तहसील के बसहा गांव निवासिनी विधवा आशादेवी पत्नी अशोक कुमार का है। गुरुवार को तहसील पहुंची आशा देवी ने उपजिलाधिकारी को बताया कि विपक्षी तहसील अदालत से लेकर राजस्व परिषद माननीय उच्च न्यायालय आदि में दायर किए गए मुकदमे में हार चुका है। इसके वावजूद अपने और पुत्र के नाम दर्ज खतौनी और आबादी पर विपक्षी कब्जा करने नहीं दे रहे है।घर नहीं होने से वह गांव में किराया का कमरा लेकर रहने को विवश है। उपजिलाधिकारी ने विधवा को सिविल न्यायालय में वाद दायर कर अनुतोषण प्राप्त करने की सलाह दिया।
पूरा मामला है क्या
आशा देवी के पति अशोक कुमार की मानसिक दशा ठीक नहीं थी।विपक्षी रंजय पुत्र श्री प्रसाद आदि इसी का लाभ उठाते हुए पति अशोक कुमार से पंजीकृत वसीयत करा लिया। जब इसकी जानकारी पत्नी आशा देवी को हुआ तो उन्होंने जैतपुर थाना में विपक्षियों और बैनामा दस्तावेज लेखक के विरुद्ध तहरीर देकर धोखाधड़ी समेत अन्य धाराओं में मुकदमा दर्ज करा दिया जिसमें चार्ज शीट भी लगी है। इसी दौरान पति की मानसिक स्थिति को देखते हुए मजिस्ट्रेट ने आशा देवी को चल अचल संपत्ति में संरक्षक बना दिया जिसका आदेश खतौनी पर अंकित हो गया। पति अशोक की मौत के बाद जरिए वरासत खतौनी विधवा आशा देवी और पुत्र रवि के नाम दर्ज हो गई। विपक्षी रंजय ने पंजीकृत वसीयत के आधार पर तहसीलदार अदालत में वाद दायर किया। सुनवाई और साक्ष्य के आधार पर मुकदमा निरस्त कर दिया गया और खतौनी विधवा आदि के नाम बनी रही। विपक्षी ने इसे माननीय उच्च न्यायालय, राजस्व परिषद, अपर आयुक्त अयोध्या आदि अदालत में चौलेंज किया किंतु सभी अदालतों ने इसे निरस्त कर दिया और दो हजार रुपए का जुर्माना भी लगा दिया।अब विपक्षी तहसीलदार अदालत में वाद दायरा देकर पुनः सुनवाई के लिए फाइल दी है। उपजिलाधिकारी पवन जायसवाल ने बताया कि वाद दायरा की सुनवाई के उपरांत ही महिला को खतौनी की जमीन पर कब्जा दिलाया जा सकता है। माननीय उच्च न्यायालय का कई आदेश है जिसमें स्पष्ट रूप से आदेश दिया गया है कि जब तक किसी न्यायालय में मुकदमा विचाराधीन है विधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती।