Ayodhya

जमीनी विवादों के मामले में सीएम का आदेश बेअसर, पीड़ितों की समस्याओं में रोड़ा बना है भ्रष्टाचार

  • जमीनी विवादों के मामले में सीएम का आदेश बेअसर, पीड़ितों की समस्याओं में रोड़ा बना है भ्रष्टाचार
  • राजस्व और पुलिस महकमा के कृत्य से आये दिन आ रही हैं बड़ी घटनाएं
  • आदत में सुधार लाने को कतई तैयार नहीं भ्रष्टाचार में लिप्त पुलिस और लेखपाल

अम्बेडकरनगर। जिले में जमीनों विवादों का गंभीर रूप धारण करना आमबात हो गयी है जिसका मुख्य कारण प्रशासनिक स्तर पर पीड़ितों की समस्याओं का सही ढंग से समाधान न किया जाना सामने आ रहा है। इसमें आमजन राजस्व और पुलिस महकमा को दोषी ठहरा रहे है, जबकि इस तरह के मामलों में मुख्यमंत्री द्वारा आये दिन निर्देश भी जारी हो रहा है। फिर भी अमल करने के बजाय सभी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं।

ज्ञात हो कि सूबे के मुख्यमंत्री द्वारा जमीनी विवाद को या अपराधिक घटनाएं सभी में जिम्मेदार विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों को आये दिन पीड़ितों की समस्याओं के निराकरण तत्काल कराये जाने का निर्देश दिया जा रहा है ताकि कोई बड़ी घटना न हो। इसके बावजूद जमीनी विवाद के मामले को देखा जाए तो जिले भर में आये दिन आ रहे है।

इसमें राजस्व व पुलिस महकमा की अहम भूमिका रहती है किन्तु इनके द्वारा किसी पीड़ित को सहीं ढंग से न्याय नहीं दिलाया जा रहा है बल्कि उलझाने के कृत्य सामने आ रहे हैं। इसकी हकीकत थाना क्षेत्रों के मामले हैं जिससे परेशान होकर पीड़ित पुलिस से लेकर राजस्व विभाग के अधिकारियों व कर्मचारियों का चक्कर लगाते फिर रहे हैं। उच्चाधिकारी आदेश भी निर्गत किया जा रहा है।

ऐसे मामलों के निस्तारण में लेखपाल और पुलिस को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है किन्तु इनकी समस्याएं जस ही तस हैं। कारण जिन पर पीड़ितों के आरोप रहते हैं उसी से सौदेबाजी का खेल जारी है। कोई पीड़ित बहुत भागदौड़ यदि किया तो भले ही उसकी समस्या का निस्तारण किया जा रहा है ज्यादातर में इनके कृत्य से बड़ी घटनाएं जैसे मारपीट व मौत होने जैसे स्थिति सामने आ रही हैं।

इसका मुख्य कारण देखा जाए तो पुलिस व राजस्व कर्मियों का भ्रष्टाचार अहम बताया जा रहा है। भ्रष्टाचार से पीड़ितों द्वारा शिकायतों में उनके द्वारा चाहे पुलिस हो अथवा लेखपाल पर आरोप भी आ रहे हैं और जांच में इन विभागों के अधिकारी दोषी पाये जाने पर सम्बंधित को निलम्बित भी किया जा रहा है लेकिन जिसकी आदत में घूसखोरी शुमार है वह कभी भी सुधार लाने को तैयार नहीं है।

इससे यह कहा जा सकता है कि इन कर्मचारियों के लिए सीएम का आदेश कोई मायना नहीं है भले ही इनके कृत्य से बड़ी घटनाएं होती रहे इससे उन्हें कोई लेना-देना नहीं है। बस नाजायज कमाई से वास्ता है।

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