Ayodhya

रजिस्ट्री दफ्तर अकबरपुर में तैनात बाबू के भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा जोरों पर

  • दशकों से दलालों के सहारे चला आ रहा है फर्जीवाड़े व कमीशन का खेल
  • इस काले कारनामें में सरकारी से लेकर गरीबों की जमीनें होती आ रही है बिक्री

अम्बेडकरनगर। जिला मुख्यालय का रजिस्ट्री दफ्तर भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है। इस भ्रष्टाचार का सामना एक तरफ जहां जमीनों के क्रेता भुगत रहे है वहीं तमाम गरीबों व सरकारी जमीनों का एग्रीमेंट कराकर दलाल विक्री करने में पीछे नहीं है जिसकी चर्चा आमजन में जोरों पर है बावजूद अंकुश लगाने की दिशा में जिम्मेंदार असफल साबित हो रहे हैं। इस काले कारनामें में एक गैर जनपद के रहने वाले बाबू की भूमिका अहम बतायी जा रही है।

उल्लेखनीय है कि सदर तहसील का यह रजिस्ट्री दफ्तर दशकों से भ्रष्टाचार के मामले में काफी चर्चित है। भ्रष्टाचार के बलबूते शहर की सरकारी जमीनें जिसमें प्रतिबंधित भी है उनकी फर्जी खतौनियां पर दलालों ने एग्रीमेंट करवाकर बिक्री कर डाला है। इसका नतीजा है कि तमसा नदी की जमीन भी बिक्री होकर उसमें आलीशान इमारतें लहरा रही है।

अभी कुछ माह पहले सुप्रीम कोर्ट व एनजीटी के नियमों को देखते हुए प्रशासन द्वारा सीमांकन कराया गया, वास्तविकता भी सामने आ गयी किन्तु कार्यवाही शिथर है जिससे भू-माफियाओं का हौंसला बुलंद है। भ्रष्टाचार के चलते अभी भी सरकारी से लेकर गरीबों की जमीन दलाल एग्रीमेंट कराकर अपना करोबार फैलाये हैं।

सूत्रों के अनुसार रजिस्ट्री दफ्तर का एक बाबू जो सुल्तानपुर जिले की कादीपुर तहसील क्षेत्र का रहने वाला है उसका दलालों व जालसाजों पर पूरी तरह से संरक्षण है जिसके एवज में उसके द्वारा मुह मांगी कमायी की जा रही है। बताया तो यहां तक जाता है कि इस बाबू द्वारा जो सही ढंग से जमीनों का बैनामा लेने वाले जरूरतमंद है उनसे भी बतौर कमीशन बगैर लिये उन्हें नहीं बक्शा जा रहा है।

रजिस्टार हैं तो वे भी दफ्तर के बाबू के भ्रष्टाचार पर अंकुश लगानें की दिशा में अनदेखी कर रहे है जिसका मुख्य कारण बैनामों के कमीशन में बंदरबांट बताया जा रहा है। गत सप्ताह एक फौजी द्वारा बैनामा कराये जाने के मामले में उससे भी बाबू हर तरह का कमीशन लेने के लिए हथकण्डा अपनाया गया किन्तु किसी कलेक्ट्रेट के कर्मचारी द्वारा हस्तक्षेप पर वह कामयाब नहीं हो सका। रजिस्ट्री दफ्तर के भ्रष्टाचार को लेकर जिधर देखिये वहीं चर्चा का बाजार गर्म है। बताया जाता है कि ऐसा मामला डीएम व एडीएम तक भी जाया करता है किन्तु वहां भी जांच में लीपा-पोती होने से नतीजा सिफर होता आ रहा है।

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