Ayodhya

फादर्स- डे पर हमें पिता के साथ सभी बुजुर्गों के आदर व सम्मान करने का संकल्प लेना चाहिए-डीएम

जलालपुर, अंबेडकर नगर।प्रतिवर्ष जून महीने के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है जिसका उद्देश्य अपने पिता के प्यार व त्याग के प्रति सम्मान प्रकट करना है। मदर्स डे की तर्ज पर फादर्स डे मनाने की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका की एक लड़की सोनोरा स्मार्ट डोड द्वारा पहली बार 1909 में की गयी और 1930 में यह पहली बार राष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया। धीरे-धीरे अमेरिका की सीमाओं को तोड़ते हुए यह पूरी दुनिया में फैल गया और प्रतिवर्ष जून के तीसरे रविवार को वैश्विक रूप से पितृ दिवस मनाया जाने लगा।

इस अवसर पर जिले के प्रशासनिक मुखिया जिलाधिकारी श्री अविनाश कुमार सिंह ने पिता के बारे मैं अपने विचारों को साझा करते हुए कहा कि पिता ना केवल हमें शरीर देता है बल्कि हमें समाज में रहकर संघर्ष करते हुए अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ना भी सिखाता है। अपने पिता से जुड़े संस्मरणों को याद करते हुए जिलाधिकारी ने कहा कि पिता से मुझे ईमानदारी से कार्य करने व संवेदनापूर्वक व्यवहार करने की सीख मिली है।

मेरे माता-पिता मेरे साथ ही रहते हैं

आज भी मेरे माता-पिता मेरे साथ ही रहते हैं तथा कई सारे सामाजिक मुद्दों पर सलाह मशवरा करते हुए राह दिखाने का काम करते हैं। युवाओं का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि माता-पिता की सेवा करना और उनका सम्मान करना ही हमारी संस्कृति रही है। भगवान गणेश का उदाहरण देते हुए जिलाधिकारी ने कहा कि भारतीय संस्कृति में माता पिता को भगवान से भी ऊपर माना गया है अतः इस पितृ दिवस पर हमें अपने पिता के साथ सभी बड़े बुजुर्गों के आदर व सम्मान करने का संकल्प लेना चाहिए।

जिले के पुलिस अधीक्षक श्री अजीत कुमार सिन्हा ने अपनी यादों को ताजा करते हुए कहा कि उन्हें अपने पिता से करुणा, ईमानदारी व स्वावलंबन की सीख मिली थी जो आज भी उन्हें प्रेरित करती रहती है। इस उम्र में भी पिता के द्वारा दी गई डांट फटकार जहां एक और सुखद अहसास करवाती है वहीं दूसरी ओर अपने कर्तव्य पथ पर भी डटे रहने की प्रेरणा देती है। इस अवसर पर हम सभी को माता पिता की सेवा करते हुए उनके प्रति अपने कर्तव्यों के निर्वहन का संकल्प लेना चाहिए।

गरिमा और मर्यादा के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना

उपजिलाधिकारी जलालपुर श्री हरिशंकर लाल ने पिता द्वारा दी गई नसीहतों को याद करते हुए कहा कि लगातार 39 वर्ष शिक्षण कार्य करते हुए पिता ने गरिमा और मर्यादा के साथ जीवन की चुनौतियों का सामना करना सिखाया। अपने संघर्ष के दिनों की याद को ताजा करते हुए कहा कि मेरे ऊपर भी सफलता को लेकर भारी दबाव था लेकिन पिता के विश्वास व सहयोग की बदौलत वह सामाजिक और मानसिक दबाव का सामना करने में सफल हुए। अतः आज की तेज रफ्तार जिंदगी में पिता का आवरण हमें तमाम कठिनाइयों का सामना करने में सक्षम बनाता है।

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